۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
علی ہاشم عابدی

हौज़ा /जब से यह दुनिया बनी है न जाने कितने बड़े बड़े हादसे हुए कि जिस से इंसान कांप गया लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुज़रा उस का असर कम हो गया और उन में से ज़्यादा तर हादसे लोग भूल भी गये, लेकिन जो हादसा 10 मुहर्रम 61 हिजरी को करबला में हुआ वह कल भी ताज़ा था और आज भी ताज़ा है, इमाम हसन अ०स० ने इमाम हुसैन अ०स० से फरमाया: जैसा ग़म का दिन तुम्हारा है वैसा कोई दिन नहीं है! इसी तरह इमाम ज़ैनुल आब्दीन अ०स० ने फरमाया: जैसा ग़म का दिन मेरे वालिद (इमाम हुसैन अ०स०) का है वैसा कोई दिन नहीं है! 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, लखनऊ, पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी अशरा ए मजालिस बारगाह उम्मुल-बनीन सलामुल्लाह अलैहा मंसूर नगर में सुबह 7:30 बजे आयोजित किया जा रहा है, जिसे मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी खेताब कर रहे हैं।

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने अशरा ‌ए मजालिस की तीसरी मजलिस में रसूलुल्लाह स०अ० की हदीस "यक़ीनन क़त्ले हुसैन (अ.स.) से मोमिनों के दिलों में ऐसी गर्मी पैदा हो गई है जो  कभी ठंडी नहीं होगी।" को बयान करते हुए कहा: जब से यह दुनिया बनी है न जाने कितने बड़े बड़े हादसे हुए कि जिस से इंसान कांप गया लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुज़रा उस का असर कम हो गया और उन में से ज़्यादा तर हादसे लोग भूल भी गये, लेकिन जो हादसा 10 मुहर्रम 61 हिजरी को करबला में हुआ वह कल भी ताज़ा था और आज भी ताज़ा है, इमाम हसन अ०स० ने इमाम हुसैन अ०स० से फरमाया: जैसा ग़म का दिन तुम्हारा है वैसा कोई दिन नहीं है! इसी तरह इमाम ज़ैनुल आब्दीन अ०स० ने फरमाया: जैसा ग़म का दिन मेरे वालिद (इमाम हुसैन अ०स०) का है वैसा कोई दिन नहीं है!


 मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने कहा: इमाम हुसैन अ०स० के दुश्मनों की एक बुरी सिफत चापलूसी थी, चापलूसी यानी हक़ से ज़्यादा किसी की तारीफ करना, रवायत में है कि मोमिन कभी चापलूसी नहीं कर सकता, मुग़ैरा ने चापलूसी में यज़ीद जैसे फासिक़ व गुनाहगार की वली अहदी की पेशकश की, क़ाज़ी शुरैह ने यज़ीद व इब्ने ज़ेयाद की चापलूसी में क़त्ले हुसैन अ०स० का फतवा दिया, हदीसों में है कि चापलूसी ईमान और नबियों के अख़्लाक़ से दूर है बल्कि कभी कभी कुफ्र भी हो जाती है!

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